अगस्त महीने के 19 दिन बीत जाने के बावजूद भी डीएवीपी में अखबारों के इम्पैनलमैन्ट की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। यहाँ तक कि पिछले वर्ष फरवरी और जुलाई महीनों में भरे गये आवेदनों के विचार के लिये अब तक पीएसी की मीटिंग भी नहीं हुई है। इस संबंध में जब भी डीएवीपी अधिकारियों से बात की गई उनके गैर जिम्मेदाराना जवाब ही मिले। डीजी ऑफिस में बात करें या एडीजी दोनों ही जगह से एक ही जवाब मिला कि अभी उन्हें पिछली मीटिंग या पीएसी मीटिंग के बारे कुछ नहीं पता और ना ही फ्रेश इम्पैनलमेन्ट के शुरू होने की जानकारी है।
गौरतलब है कि डीएवीपी में कोई कामकाज सुचारू रूप से नहीं चल रहा है। पैनल पर सूचिबद्ध समाचार पत्रों को भारी-भरकम कागज़ी कार्रवाई पूरी करने के बावजूद इस बात को कोई ठिकाना नहीं कि उन्हें विज्ञापन मिलेगा या नहीं। यहाँ तक कि विज्ञापन प्रकाशित हो जाने के बाद कई प्रकाशक बिल के भुगतान के लिये परेशान हैं।
सरकार ने 2016 के बाद से लघु और मध्यम समाचार पत्रों के विज्ञापनो में वैसे ही भारी कटौती की है। वर्ष में मिलने वाले 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर के विज्ञापनों का भी कोई अता पता नहीं है। इस वर्ष 15 अगस्त का विज्ञापन साप्ताहिक समाचार पत्रों को नहीं मिला है।
अखबारों और अन्य माध्यमों को विज्ञापन देने में नोडल ऐजेन्सी के तौर पर काम कर रही डीएवीपी के पास ना तो प्रकाशकों के लिये कोई सुविधा है ना जानकारी। ऐसे में डीएवीपी की प्रासंगिता समझ से परे है।