पेड न्यूज़: जब खबरें बिकती हैं, लोकतंत्र रोता है

क्या आप जो खबरें पढ़ते हैं, वो सच में खबरें हैं… या कुछ और? क्या आपने कभी सोचा है कि टीवी, अखबार या वेबसाइट्स पर दिखने वाली हर खबर सच होती है?

क्या वे निष्पक्ष होती हैं?

या फिर वो खबरें किसी ने “खरीदी” होती हैं — पैसे देकर?

अगर ऐसा है, तो आप *पेड न्यूज़* की दुनिया में कदम रख चुके हैं — जहां खबरें बिकती हैं, और लोकतंत्र रोता है।

क्या है ‘पेड न्यूज़’?

“पेड न्यूज़” (Paid News) का अर्थ है किसी मीडिया संस्थान या पत्रकार को पैसे देकर अपनी मनचाही खबर को प्रकाशित या प्रसारित करवाना — वो भी इस तरह कि पाठक या दर्शक को लगे कि यह एक असली खबर है, जबकि वास्तव में वह एक विज्ञापन होती है।

सबसे गंभीर बात यह है कि इसे कभी “विज्ञापन” के रूप में टैग नहीं किया जाता।

इसका उद्देश्य होता है — छवि निर्माण, राजनीतिक लाभ, या जनमत को प्रभावित करना।

चुनावों में पेड न्यूज़: जनता के साथ धोखा

पेड न्यूज़ का सबसे व्यापक उपयोग चुनावी सीजन में देखा गया है:

उम्मीदवारों की छवि चमकाने के लिए झूठी प्रशंसा वाली खबरें

विरोधियों को बदनाम करने वाले लेख

 झूठे आँकड़े और गुमराह करने वाली रिपोर्टिंग

2010 में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कई बड़े मीडिया हाउस और राजनीतिक चेहरों के नाम सामने आए।

पेड न्यूज़ क्यों है लोकतंत्र के लिए खतरा?

1. झूठ पर आधारित सूचना: जनता को सच्चाई नहीं मिलती, बल्कि पैसे से गढ़ी गई कहानियाँ मिलती हैं।

2. गलत निर्णय: नागरिक जब वोट डालते हैं, तो उनका निर्णय *पक्षपाती और झूठी खबरों* पर आधारित होता है।

3. पत्रकारिता का पतन:  मीडिया का मुख्य उद्देश्य — सच दिखाना — खत्म हो जाता है। वह सिर्फ एक “मार्केटिंग टूल” बनकर रह जाती है।

इसका हल क्या है?

पारदर्शिता: मीडिया संस्थानों को स्पष्ट रूप से विज्ञापन और खबर में फर्क बताना चाहिए।

कड़ी निगरानी: चुनाव आयोग और अन्य नियामक संस्थाओं को सक्रिय रूप से पेड न्यूज़ की पहचान कर उस पर कार्रवाई करनी चाहिए।

जागरूक नागरिक: सबसे ज़रूरी — हम सबको आंख बंद कर खबरों को नहीं, दिमाग खुला रखकर पढ़ना और देखना चाहिए।

सूचना एक शक्ति है — पर झूठी सूचना जहर बन जाती है

जब खबरें बिकने लगती हैं, तो लोकतंत्र धीरे-धीरे दम तोड़ने लगता है।

पेड न्यूज़ न सिर्फ पत्रकारिता की आत्मा को घायल करती है, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को भी हिला देती है।

क्या आप भी कभी पेड न्यूज़ के शिकार हुए हैं?

कमेंट में अपना अनुभव जरूर साझा करें।

 इस लेख को शेयर करें और अपने दोस्तों को भी इस सच्चाई से अवगत कराएं। “खबरें वही देखिए, जो सच्चाई पर टिकी हों — क्योंकि असली पत्रकारिता सवाल करती है, बिकती नहीं।”

Dr. Taruna S Gaur, Media analyst