प्रिय प्रकाशक बन्धु,
आजादी के बाद अन्य क्षेत्रों व उद्योगों की तरह ही विकसित हो रहे अखबार जगत को भी कई जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ा। किसी भी अखबार की स्थापना जनहित के लिए की जाती है। प्रकाशक का उद्देश्य जनता से जुडे मुद्दों को उठाना होता है, लेकिन इस दूरूह कार्य के दौरान जनता की आवाज उठाते-उठाते प्रकाशक को कई बार अपनी ही आवाज घुटती हुई नजर आती है।
खासतौर से उनकी जो नए व कम प्रसार संख्या वाले समाचार पत्र के प्रकाशक हैं। उन्हें हर बार उनके कार्य के स्थान पर प्रसिद्धी और प्रसार (प्रेस्टीज एंड सर्कुलेशन) के आधार पर आंका जाता है। परंतु अखबार चाहे एक निकले या एक लाख उसके लिए कार्य उतना ही करना होता है। प्रकाशक की भावना और उद्देश्य वही होता है, फिर कम प्रसार वाले अखबारों\प्रकाशकों के साथ भेदभाव क्यों?
शुरू से ही समाचारपत्र/पत्रिका प्रकाशकों की सबसे बड़ी समस्या आर्थिक संकट रहा है। अखबार में आय का स्रोत केवल विज्ञापन होता है। ऐसे में क्षेत्रीय समाचारपत्र/पत्रिका प्रकाशक डीएवीपी की ओर आशा से देखते हैं। परंतु सरकार द्वारा दिए जाने वाले विज्ञापनों का निर्धारण कई ऐसे मापदंडो पर आधारित होता है जिसको पूरा करने के लिये सम्बन्धित अधिकारियों की विशेष कृपा व प्रसार संख्या मे हेरफेर के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता।
हालांकि हाल ही में डीएवीपी की विज्ञापन नीति में बहुत परिवर्तन लाये जा रहे हैं। हमारा मानना है कि विज्ञापन नीती 2016 में कुछ क्लॉज हैं जिनमें सुधार की आवश्यकता है और कुछ क्लॉज़ बहुत सही हैं जिनके कारण ऐसे अखबारों की छंटनी संभव हो सकेगी जो नाममात्र के लिये या किसी अन्य उद्देश्य से छपते हैं। हमारा मानना है कि इन क्लॉज को यदि सही तरीके से लागू किया गया तो उन अखबारों को मदद मिलेगी जो सही उद्देश्य के साथ छप रहे हैं।
दूसरी तरफ हमें स्वयं भी आत्मनीरीक्षण की आवश्यकता है। क्षेत्रीय समाचारपत्र के प्रकाशक को छोटे बड़े के आधार पर कई बार अपनी बिरादरी में ही सम्मान नहीं मिल पाता। हम एक दूसरे का ना तो सम्मान करने को तैयार हैं ना एक दूसरे का साथ देने को। प्रकाशक अकेले अपमान के दंश और समस्याओं से जूझता रहते हैं, क्योंकि प्रकाशक अलग ईकाईयों में काम कर रहे हैं। एक और बात कि वो जनहित के लिए बात करने में खुद को सहज महसूस करते है परंतु अपनी बारी आने पर बड़ा असहाय महसूस करते हैं उनके पास ऐसा कोई एक उपयुक्त मंच नहीं होता जहां वो अपनी आवाज उठा सके।
आज भारत में प्रत्येक प्रकार के व्यापार, रोजगार व जनहित में संलग्न संगठनों को प्रोत्साहन दिया जाता है। लेकिन अखबार के साथ दुर्भाग्य है कि व्यवसाय ना हो कर एक मिशन का दर्जा प्राप्त होते हुए भी उसे सरकारी या गैर सरकारी प्रोत्साहन या आर्थिक सहायता नहीं मिलती। जहाँ एक ओर यदि क्षेत्रीय समाचारपत्र/पत्रिका प्रकाशक अपने अखबार के लिये किसी कार्पोरेट घराने का सहयोग ले तो जनहित के मुद्दो को स्वतंत्रता से रख पाने पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा प्रदान की जा रही विज्ञापन के रुप मे सहायता मात्र मृगतृष्णा साबित होती है। हद तो यह है की ऎसी मृगतृष्णा के लिए भी दोहरे मापदण्ड स्थापित हैं। इसके लिये भी क्षेत्रीय घोर संघर्ष करना पड़ता है।
मैं हमेशा महसूस कर रहा था कि जब तक संर्घषरत समाचार पत्रों को महत्व नहीं दिया जाएगा वह अपना अस्तित्व बचाने के लिए संर्घष करते रहेंगे जिसमें उनकी काफी उर्जा खत्म होगी।
यही वजह कि क्षेत्रीय मीडिया प्रकाशकों को एक मंच पर एकत्रित व संगठित करने के लिए अकटूबर 2010 में ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिशन’ की स्थापना’ की गई है। यह एक गैर सरकारी संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य प्रकाशकों को एक मंच पर एकत्रित करना, उनके सम्मान और आर्थिक आजादी के लिये कार्य करना है।
लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिऐशन (लीपा) “लीड इंडिया ग्रुप” का एक विजनरी प्रयास है। लीड इंडिया ग्रुप इस विषय पर कई महीनों से अध्ययन कर रहा था। व्यापक अध्ययन व शोध के बाद “लीड इंडिया ग्रुप” के संस्थापक व प्रकाशक होने के नाते मैंने कई अन्य प्रकाशक बंधुओं से उनकी राय व समस्याओं को जाना, और इसके उपरांत हमने ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ (लीपा) का गठन करने का निश्चय किया और गहन अध्यय के बाद लीपा के कार्य और उद्देश्य निर्धारित किये जिनके माध्यम से बिना सरकारी मदद के क्षेत्रीय समाचारपत्र प्रकाशकों की मदद की जा सके।
लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन (लीपा) का उद्देश्य:
लीपा का एक प्रमुख उद्देश्य प्रकाशकों की समस्याओं का समाधान व प्रगति करने में सहायता करना है। लीपा अलग-अलग ईकाई की तरह कार्य कर रहे समाचारपत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशकों को एक समूह के रूप में जोड़ना चाहती है ताकि जब वो किसी मुद्दे को उठाएं तो उसे सशक्त आवाज की तरह सुना जा सके।
लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन (लीपा) के कार्य:
‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ समाचारपत्र-पत्रिका प्रकाशकों को हरसंभव सहायता करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। इसके लिए प्रकाशकों के सामने आने वाली बुनियादी समस्याओं को पहचाना, उनके समाधान के लिये कार्य विभाजन किया गया। लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिऐशन की ओर से निम्नलिखित सहायता प्रदान की जाती हैं।
1. एसएमस सेवा
लीपा अपने सभी सदस्यों को आरएनआई, डीएवीपी, पीसीआई में होने वाली सभी गतिविधियो जैसे, एनुअल स्टेटमेंट ई-फालिंग, डीएवीपी इम्पैनलमेंट ईफाइलिंग, डीएवीपी रेट रिन्यूअल ईफाइलिंग आदि के निर्धारित समय की जानकारी प्रदान करती है ताकि प्रकाशक समय पर अपने अखबार के लिये जरूरी डॉक्युमेंटेशन कर सके। इसके अलावा एसएमएस सेवा के माध्यम से उन्हें अन्य उपयोगी जानकारियाँ भी भेजी जाती हैं।
2. मिशन वेबसाइट:
आज भारत तेजी से डिजिटलाइजेशन की ओर बढ़ रहा है, अखबार का डिजिटलाइजेशन आज के समय की मांग है। अखबार का डिजिटलाइजेशन कम कर्च में अधिक प्रसार और विज्ञापन का नया रास्ता है। वर्तमान में डीएवीपी में अखबार की तरह वेबसाइट्स का भी विज्ञापन हेतु इम्पैनलमेंट होने लगा है। लीपा अखबारों को मिशन वेबसाइट के अंतर्गत 2010 से ही डिजिटल बनाने में सहायता कर रही है।
3. मोबाइल एप
लीपा ने नये वर्ष पर 2017 में अपने सदस्यों के लिये मोबाइल एप की सुविधा भी लॉन्च कर दी है। मोबाइल एप एक आधुनिकतम सोफ्टवेयर है जिसे समाचारपत्र और समाचार चैनल पहले से ही इस्लेमाल कर रहे है। इसके माध्यम से वो अधिक से अधिक पाठको और विज्ञापनदाताओ को आकर्षित कर रहे हैं। लेकिन यह सुविधा काफी महंगी होती है जिसे रीजनल मीडिया द्वारा लिया जाना मुश्किल होता है। अत: लीपा ने मोबाइल एप की यह सुविधा लॉन्च की है। लीपा अपने सदस्यों को मोबाइल एप को बेहद कम कीमत में उपलब्ध करा रही है।
4. तकनीकी सहायता:
संचार क्रांति के युग में तकनीक से किनारा नहीं किया जा सकता। परंतु प्रत्येक समाचारपत्र-पत्रिका प्रकाशक के पास तकनीकी जानकारी हो यह संभव नहीं। कई बार मामूली तकनीकी समस्या के चलते प्रकाशन पर व्यापक असर पड़ता है। अत: लीपा अखबार निकालने में होने वाली तकनीकी समस्याओं (कंप्यूटर संबधित) से निपटने में हरसंभव सहायता प्रदान करती है। यह सहायता रिमोट असिसटेंट द्वारा प्रदान की जाती है।
5. ईफाइलिंग:
लीपा प्रत्येक वर्ष अपने सदस्यों को नोमिनल फी में एनुअल स्टेटमेंट ई-फालिंग, डीएवीपी इम्पैनलमेंट ईफाइलिंग, डीएवीपी रेट रिन्यूअल ई-फाइलिंग करने में सहायता करती है। इसके लिये हर वर्ष एक एक्सपर्ट टीम हायर की जाती है। और जीरो मिस्टेक पर ई-फाइलिंग की जाती है।
6. दस्तावेजी सहायता:
मीडिया संबंधी विभाग जैसे आरएनआई, डीएवीपी, पीसीआई आदि विभागों में होने वाले डॉक्युमेंटेशन और उनके फोर्मेट्स आदि की जानकारी ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिऐशन’ (लीपा) नि:शुल्क उपलब्ध कराती है।
7. परामर्श:
कई बार समाचारपत्र-पत्रिका प्रकाशक जानकारी के अभाव में विज्ञापन अथवा अन्य लाभों से वंचित रह जाते हैं। अत: समय समय पर लीपा अपने सदस्यों को ऐसी सभी जानकारी SMS द्वारा नि:शुल्क उपलब्ध कराती है। इसके अलावा आरएनआई, डीएवीपी पीसीआई आदि विभागो के संबंध में किसी भी प्रकार की सलाह लीपा की एक्सपर्ट टीम द्वारा नि:शुल्क प्रदान की जाती है।
8. ऑडिट सहायता:
आरएनएनआई में एनुअल स्टेटमेंट फाइलिंग में व अखबार के ऑडिट के दौरान कई प्रकार की समस्याएं आती हैं। लीपा कम से कम खर्च पर चार्टर्ड एकाउंटेंट की सेवा उपलब्ध कराती है। ताकि सदस्यों को सभी प्रकार की वित्तीय सलाह मिले व संबंधित कागजात समय पर पूरे कराए जा सकें।
सदस्य पात्रता:
“लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिऐशन” की सदस्यता नि:शुल्क है। सदस्य होने के लिए प्रकाशक होने की पात्रता अनिवार्य है। लीपा के सभी सदस्यों की सूची “लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिऐशन” (लीपा) की ऑफिशियल वेबसाईट www.lipa.co.in पर जारी की जायेगी।
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नोट: असुविधा से बचने के लिए सदस्यता फार्म में उल्लेखित निर्देशों के अनुसार ही सदस्यता फार्म भरें। किसी भी प्रकार की सहायता के लिए लीपा के हेल्पलाइन नम्बर 09899744568 अथवा दिल्ली में स्थित मुख्य कार्यालय 011-22526645 /46, पर संपर्क करें। अथवा हमे lipamember@gmail पर सम्पर्क करें।
धन्यवाद
सुभाष सिंह
अध्यक्ष: ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिऐशन’ (लीपा)
संस्थापक व प्रकाशक: ‘लीड इंडिया ग्रुप’