अखबार हुआ इम्पैनल्ड, डीएवीपी ने भेजा नॉट एप्रूव्ड का लैटर

डीएवीपी का एक और कारनामा सामने आया है। 22 जून 2011 को जिस अखबार को डीएवीपी की वेबसाइट पर इम्पैनल्ड दिखाया उसी अखबार को 28 जून 2011 को ‘नॉट एप्रूव्ड’ का लैटर भेज दिया।. 

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अखबार ‘इंडिया हाइलाइट’। उक्त अखबार ने अगस्त 2010 को डीएवीपी में इम्पैनलमेंट के लिए आवेदन दिया था। पीएसी मीटिंग से बाद प्रकाशक को डीएवीपी द्वारा कुछ डॉक्युमेंट जमा करने के लिए कहा गया ताकि उनका अखबार डीएवीपी एप्रूव्ड हो सके। पत्र मिलने के बाद प्रकाशक ने डीएवीपी द्वारा मांगे गए दो डॉक्युमेंट 1- कॉपी ऑफ प्रिंटिंग प्रेस, 2- कॉंट्रेक्ट लैटर बिटविन न्यूज़पेपर एण्ड प्रिंटिंग प्रेस डीएवीपी में सही समय पर जमा करा दिये। 

इसके बाद प्रकाश ने 22 जून 2011 को डीएवीपी की ऑफिशियल वेबसाइट पर अपने अखबार का स्टेटस चैक किया जो वहां पर इम्पैनल्ड दिखा रहा था, उसका NO.210532 था। लेकिन छ: दिन बाद ही प्रकाशक को डीएवीपी द्वारा एक और लैटर भेजा गया। लैटर में बताया गया कि आपका अखबार पीएसी ने रिजेक्ट कर दिया है क्योंकि आपने उसमें ओरिजनल अनेक्सचर XII, अखबार की कॉपी और प्रिंटिंग प्रेस रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट नहीं लगाया था। रिजेक्ट करने के कारण इस बार डीएवीपी ने दूसरे बताए थे, जबकि जमा कराने के लिए दूसरे डॉक्युमेंट बताए थे। ये देख कर प्रकाशक हैरान रह गए क्योंकि ये सभी डॉक्युमेंट उन्होंने खुद डीएवीपी के ऑफिस में जकर जमा कराए थे। 

 ऐसे में डीएवीपी की कार्य प्रणाली और पीएसी की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठते हैं। सवाल यह भी है कि अगर एक अखबार जिससे कुछ डॉक्युमेंट दुबारा जमा कराने  की फॉर्मेलिटी पूरी कराई जाती है उसे दूसरे कारण बता कर कैसे रिजेक्ट किया गया। 

 1. गंभीर सवाल यह भी है कि हर साल प्रकाशक जो आवेदन के दौरान अपने सभी डॉक्युमेंट जमा कराते हैं वो खो कैसे जाते है? 

 2. क्या प्रकाशकों द्वारा जमा कराए गए अखबार और उनके डॉक्युमेंट वास्तव में पीएसी की बैठक में रखे जाते हैं? 

 3. यदि हां तो कैसे कुछ अखबारों को डीएवीपी की वेबसाइट पर पहले ही ‘नॉट एप्रूव्ड’ कर दिया गया? 

 4. क्या डीएवीपी और पीएसी मिलकर लघु प्रकाशकों के साथ धोखा करते हैं? 

 डीएवीपी की विज्ञापन नीति 2007 के मुताबिक पीएसी में लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्थाओं से प्रतिनिधि शामिल करने की बात साफ लिखी  है, लेकिन हर बार पीएसी की बैठक में डीएवीपी के प्रिय या विश्वसनीय कुछ व्यक्तियों को ही पीएसी में शामिल किया जाता रहा है। इसमें लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के  किसी भी प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया जाता। क्या डीएवीपी और पीएसी मिल बैठकर अखबारों का चयन कर लेते हैं कि किन्हें रखना है और किन्हे निकालना। इसके लिए  किसी भी डॉक्युमेंट को चैक करने की आवशयकता नहीं होती। 

अगर यही सत्य है तो प्रकाशकों को देश के दूर-दूर के कोने से इम्पैनलमेंट के नाम पर अखबार और डॉक्युमेंट जमा करने के लिए दिल्ली बुलाने का ढोंग करना बंद करे डीएवीपी। पारदर्शिता का ढोंग करने के लिए पीएसी में कुछ ऐसे चुनिन्दा लोगों को शामिल किया जाता है जो ना ही किसी लघु एवं मध्यम समाचरपत्रों के संगठन से जुड़े होते हैं और ना ही उनकी समस्याओं को समझते हैं।