डीएवीपी में कामकाज का लाचर रवैया कहें या सरकार के छुपे हुए निर्देश, डीएवीपी में ना तो अभी डीपैनल हुए अखबारों की लिस्ट अपलोड हो रही है और ना ही फ्रेश एम्पैनलमेंट को शुरू किया जा रहा है। ऐसा लगता है कि सरकार ने हर तरह से प्रिंट मीडिया का गला घोटने की तैयारी कर रखी है। पिछले हफ्ते बताया गया था कि नये आवेदन के लिये प्रक्रिया 1 अगस्त के बजाय 5 अगस्त से शुरू हो जाएगी लेकिन, यह प्रक्रिया अब अनिश्चितता में पहुंच गई है।
डीएवीपी अधिकारी का कहना है कि हम कोशिश कर रहे हैं कि ये दोनो काम जल्द से जल्द पूरे किये जाएं लेकिन तारीख बताने में डीएवीपी असमर्थ है। ऐसे में जिन्होंने अगस्त 2016, फरवरी 2017 में अपने अखबारों का डीएवीपी में फ्रेश आवेदन किया था, असमंजस की स्थिति में हैं और जो अखबार डीपैनल हुए हैं उन्हें अपनी स्थिति का पता नहीं।
नई विज्ञापन नीति 2016 के आने के बाद से कई अखबार डीपैनल हुए हैं, उसके बाद दो बार की पीएसी मीटिंग पैंडिंग है। इतना ही नहीं जो अखबार पैनल पर हैं उन्हें भी अपने बिल क्लियर करवाने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे अखबारों की भी एक लम्बी लिस्ट है जो पैनल पर तो हैं लेकिन उनके अखबारों की जांच आरएनआई में अटकी हुई है, उन्हें भी विज्ञापन मिलने बन्द हो चुके हैं और वो कब शुरू किये जाएंगे इसका भी कोई जवाब डीएवीपी के पास नहीं है। ऐसा लगता है सरकार अखबार और उनसे जुड़ॆ परिवारों के प्रति पूरी तरह उदासीन है।
ऐसे में क्षेत्रीय अखबार और उनसे जुड़ॆ परिवारो पर घोर आर्थिक संकट के बादल मंडरा रहे हैं और सरकार खामोश है। कुछ प्रकाशको का मानना है कि डीएवीपी की नई विज्ञापन नीति से फेक सर्कुलेशन और सांठ-गांठ कर के विज्ञापन लेने वाले अखबारों की छटनी हो जाएगी और सही मायनो में काम कर रहे अखबारों के लिये राहत की बात होगी। वहीं दूसरी ओर एक बड़ा वर्ग है जिसका मानना है कि नई विज्ञापन नीति अखबारो का दमन करने वाली है और ऐसे मीडिया को पोषित करने वाली है जिसे मैनेज किया जा सके।
ऐसे में प्रकाशको में भारी नाराजगी है, इस मुद्दे पर लीपा सभी अखबार मालिकों से उनकी राय आमंत्रित कर रही है। आप अपनी राय, अपनी नारजगी, अपनी परेशानी lipamember@gmail.com पर भेजें। यदि डीएवीपी की अनिमितता या मनमानी के खिलाफ आपके पास कोई डॉक्युमेंट है तो आप निसंकोच शेयर करें आपका नाम गुप्त रखा जाएगा।
आपकी राय इस विषय पर बहुमूल्य होगी। पिछले साल विज्ञापन नीति 2016 लागू होने के वक्त भी जब सब प्रकाशको ने इस पर अपनी राय भेजी थी तब उसका असर हुआ था। पिछले साल प्रकाशको ने नई विज्ञापन नीति पर अपनी चिंता, नाराजगी और सुझाव हमें अपने लेटरहेड पर भेजे थे जिन्हे पीएमओ और आईबी मिनिस्ट्री को भेजा गया था। इसके बाद तीन प्रमुख सुधारों को सरकार ने माना था। हमें आशा है इस विषय पर भी सरकार पर समाधान निकालने का दबाव बनाया जा सकेगा।