“मैं पिछले सात सालों से अख़बार चला रहा हूँ, कई बार डीएवीपी के लिए आवेदन कर चुका हूँ, हर बार बिना कारण बताये मेरा अखबार रिजेक्ट होता रहा, लेकिन केवल लीपा के दबाव की वजह से मेरा अख़बार इस बार एम्पैनल हुआ।“
“मैं निश्चिन्त था की हर बार की तरह इस बार भी मेरा
अख़बार एम्पैनल नहीं होगा, मैंने अपने मामले को कोर्ट में ले जाने के लिए लीपा से आग्रह भी किया था क्योंकी मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कलर अख़बार की पूअर प्रिंटिंग कैसे हो सकती है परन्तु लीपा को बहुत बहुत धन्यवाद कि उसकी वजह से मेरा अखबार एम्पैनल हो गया।“.
“मैंने तीसरी बार डीएवीपी में अपने अखबार के एम्पैनलमेंट के लिये आवेदन दिया था, इस बार भी रिजेक्ट हो गया लेकिन मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मै तुरंत ही जान पाया कि मेरा अखबार किन वजहों से रिजेक्ट हुआ, साथ ही मै अब डीएवीपी में जाकर अपनी फाईल पर हुई कारवाई को भी देख सकूँगा, यह सब कुछ केवल लीपा की ईमानदार कोशिशों की वजह से हुआ है।“
ऐसे कई प्रकाशकों ने एम्पैनलड (अगस्त 2010 में आवेदित) अखबारों की सूची जारी होने के बाद लीपा को अपने-अपने शब्दों में धन्यवाद दिया। हमने ऐसे प्रकाशकों के नामों की जानकारी इसलिए नहीं दी है ताकि उनके हितों पर किसी भी प्रकार की आंच न आये। पहले डीएवीपी के बारे में प्रसिद्ध बात थी कि डीएवीपी के इर्द-गिर्द दलालों का ऐसा जाल बुना हुआ है कि जब तक आप उनको चढावा न चढ़ा दें आपका अखबार एम्पैनलड नहीं हो सकता क्योंकी यह चढ़ावा ऊपर से लेकर नीचे तक डीएवीपी के अधिकारीयों मे बांटा जाता है। अगर आपका अखबार दैनिक है तो आपको मोटा चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है इसी तरह साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक अखबारों के लिए भी चढ़ावे के रूप में अलग-अलग रेट फिक्स था। अखबार का मालिक हो, प्रकाशक हो, सम्पादक हो या तीनो हो, इनको डीएवीपी में जाकर दलालों के चंगुल में फँसना एक अनिवार्य शर्त बन गया था। अगर कोई प्रकाशक इन दलालों को अपने आस-पास फटकने नहीं देता तो उसके सामने विकल्प के तौर पर यही होता की आप आवेदन करते रहें, आपका अखबार रिजेक्ट होता रहेगा।
रिजेक्शन के बाद से किसी भी प्रकाशक को सूचित तक नहीं किया जाता था की आखिर आवेदन में क्या कमी रह गयी थी कि उसका अखबार रिजेक्ट कर दिया गया। चढ़ावा नहीं चढाने पर ‘आवेदन पर आवेदन और रिजेक्शन पर रिजेक्शन ‘ जैसी एक अनौपचारिक पद्धति डीएवीपी मे विकसित हो गयी थी।
लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन (लीपा) जब से अस्तित्व में आया, हमने सबसे पहला संकल्प लिया की डीएवीपी में प्रकाशकों को दलालों के चंगुल बचाना है। यही वजह थी कि डीएवीपी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी एसोसिएशन ने प्रकाशकों की मदद के लिए डीएवीपी में कैम्पेन किया और हमने डीएवीपी में खड़े होकर प्रकाशकों से कहा कि आप किसी भी दलाल या एजेंट के बहकावे में न आयें, लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन आपके साथ है यदि इस बार आपके अखबार के साथ कोई अन्याय हुआ तो हम आपकी तरफ से अदालत तक का दरवाजा खटखाटाएंगे।
हमारे द्वारा किये गए कैम्पेन, देश भर के हजारों प्रकाशकों और डीएवीपी के अधिकारियों को भेजे जा रहे हमारे SMS और ईमेल के दबाव का असर हुआ कि डीएवीपी को एम्पैनलमेंट पद्धति में पारदर्शिता लानी ही पड़ी। डीएवीपी ने अब हर रिजेक्शन का कारण लिखित रूप से प्रकाशकों को देगी साथ ही यदि कोई प्रकाशक अपने अखबार के रिजेक्शन का कारण तत्काल देखना चाहे तो डीएवीपी की वेबसाईट पर एप्लीकेशन न0 के माध्यम से देख सकता है।
लीपा के दबाव में पहली बार डीएवीपी, प्रकाशकों को यह अवसर दे रही है कि रिजेक्टेड अखबार के प्रकाशक सीधे तौर पर अपनी फाइल पर हुई कार्रवाई देख सकेंगे। यह इम्पैनलमेंट पद्धति में पारदर्शिता लाने हेतु एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन पर्याप्त नहीं है।
मेरा मानना है कि यह पद्धति ही गलत है कि आवेदित अखबार में कोई कमी हो तो उसे सीधे तौर पर रिजेक्ट कर दिया जाए। पीआईबी सहित अमूमन सभी विभागों में ऐसा होता है कि आपने आवेदन किया और यदि आपके आवेदन में कोई त्रुटि रह गई है तो सम्बधित विभाग उस त्रुटि के सन्दर्भ में आपसे सवाल करता है, यदि आप उस त्रुटि को सही कर लेते है तो आपके आवेदन पर आगे की करवाई की जाती है।
जबकि डीएवीपी बिना अवसर दिए, बिना त्रुटि बताये सीधे-सीधे अखबार को रिजेक्ट कर देती है। इससे प्रकाशकों को फिर से आवेदन हेतु पूरी प्रकिया दुहराना पड़ता है। इस कार्य को प्रकाशकों द्वारा तबतक दुहराया जाता है जब तक उनका अखबार सूचीबद्ध न हो जाय। यह एक पीड़ादायक सफर बन जाता है जिसका रास्ता अंतहीन है।
आमतौर से डीएवीपी में एक भ्रम और फैलाया जाता है की कम प्रसार वाले अखबार पत्रकारिता कम और अन्य कार्यों में ज्यादा संलिप्त होते है हकीकत यह है कम प्रसार वाले अखबार भी उतने ही महत्व और गरिमा रखते है जितना ज्यादा प्रसार वाले अखबार। हमारे देश में इतनी भाषायें बोली जाती है कि किसी भी एक अखबार द्वारा सभी भाषाओं में खबर प्रकाशित करना कतई संभव नहीं है। लघु समाचारपत्रों ने नक्सली समस्या, शिक्षा और भ्रष्टाचार से जुडी कई ऐसे खबरों को उजागर किया है जिससे समाज का व्यापक हित हुआ है।
‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ प्रकाशकों के हितों के लिए कटिबद्ध है। डीएवीपी में हुआ सुधार आंशिक है, अभी भी डीएवीपी में भ्रष्टाचार के फलने-फूलने की शिकायतें हमारे पास ढेर सारी है। ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ अपने उद्देश्य और विजन को लेकर बिलकुल स्पष्ट है। हम हर हाल में प्रकाशकों के हितों की सुरक्षा के लिए कार्य करते रहेंगे।
लेखक श्री सुभाष सिंह लीड इंडिया दैनिक, इनसाइड स्टोरी पाक्षिक और सेंसेक्स टाइम बिजनेस पाक्षिक के प्रकाशक हैं एवं लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। श्री सुभाष सिंह से subhash_singh27@yahoo.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।