डॉ तरूणा एस. गौड़, समूह सम्पादक
आज की पत्रकारिता के कई शब्दों पर मुझे बड़ी आपत्ती है| क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि इन शब्दों को बदलने का वक्त आ गया है| जो भी न्यूज़ में आ जाता है उसका समाज पर एक बड़ा असर पड़ता है| आज मैं उन्ही कुछ शब्दों के ले रही हूँ जो अक्सर मीडिया में सुर्खी बनाते हैं , कई बार इनका बहुत बुरा सामाजिक असर होता है|
कई बार साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने में इन शब्दों का बड़ा हाथ होता है| एक शब्द है भाग जाना| आपने अक्सर अखबारों की हैडलाइन देखी होंगी – “लड़की को लेकर भागा”, “युवती प्रेमी संग भागी, “दो बच्चो की माँ प्रेमी संग फरार”| क्या आज के बदलते परिद्रश्य में ये शब्द सही हैं? जहां एक ओर हमारा संविधान हमें राईट तो लिव, यानी जीने का अधिकार देता है, एक बालिग़ लडके या लड़की को अपनी मर्जी से अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार देता है वहां पुराने जमाने की गोसिप लेंगुएज “भाग गयी” या “भाग गया” का इस्तेमाल कितना सही है|
दूसरा शब्द है फुसला कर ले भागा| ये शब्द उस मामले में सही है जहां 12-14 साल की बच्ची का मामला हो| लेकिन अगर महिला शादीशुदा है तो फुसलाने वाली बात कहाँ तक जायज है| इसमे तो साफ-साफ महिला का फैसला है, हाँ इसके मानवीय, सामाजिक और कानूनी पहलू अलग हैं जिनके बारे में महिला को सोचना चाहिए – जैसे उसे यदि किसी के साथ शादी करनी है तो अपने पहले पति से तलाक लेना चाहिए| इसका और मानवीय पहलू ये है की भागने से पहले बच्चो के बारे में सोचना चाहिए| और सामाजिक पहलू ये है की उसे अपने दोनों परिवारों की इज्जत का ख्याल रखना चाहिए| फिर भी बालिग़ होने के बाद ये दो व्यक्तियों का निजी फैसला है उसे अखबारों की सुर्खी बनाने का क्या अर्थ है|
तीसरा शब्द है| ओनर किलिंग, यानी इज्जत के नाम पर प्रेमी-प्रेमिका की ह्त्या| ह्त्या को ओनर से जोड़ने पर तो उन्ही लोगो का फ़ायदा हुआ जो झूठी इज्जत के नाम पर अपने बच्चो को खुद मार देते हैं| बेहतर है ओनर किलिंग शब्द के बजाए इसे होरर किलिंग कहना चाहिए| और चौथा शब्द है लव जिहाद, आजकल ये शब्द हिन्दू मुस्लिम भाईचारा बिगाड़ने के लिए खूब चलता है| अखबारों को चाहिए कि जब वो दो अलग धर्मो की प्रेम कहानी या शादी की खबर छापे तो पहले तथ्य जांच लें मसलन, लडके या लड़की ने अपना धर्मं छुपा कर प्रेम जाल फैलाया और शादी की| यदि हाँ तो ये लव जिहाद है| और नहीं तो ये भारत के संविधान के द्वारा मिला उनका अधिकार है| लेकिन प्रेम प्यार के मामलों में भला कोइ अपनी पहचान कितने दिन तक छुपाये रख सकता है| अगर लड़की इस पर खुद एक्शन लेना चाहे तो बात सही भी है, बाकी किसी को इसमे बोलने का लीगली कोइ राईट नहीं है| लड़की को लडके के ऊपर केस करने का पूरा अधिकार है| बल्लभगढ़ के बाद अब रेवाड़ी में लव जिहाद, नाबालिग हिंदू लड़की को लेकर मुस्लिम युवक फरार इस तरह की खबरों को प्रमुखता देने से पहले यदि शब्दों का चयन ठीक कर लिया जाए तो समाज के प्रति पत्रकारिता की सच्ची जिम्मेदारी पूरी हो सकती है|
दुनिया में इतना अन्याय है जहाँ खबर बनाने की जरूरत है, जहाँ मीडिया के हस्तक्षेप की जरूरत है| इंटरनेट और आधुनिक तकनीक के इस दौर में युवाओं की सोच बदली है और उनकी पहुँच भी बहुत व्यापक हुई है, ऐसे में प्यार को किसी सीमा में बाँध कर नहीं रखा जा सकता हाँ लेकिन शब्दों को जरूर सही और गलत की सीमा में बाँध कर रखा जा सकता है| ऐसे में हम अपनी कलम को सही दिशा देकर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने से जरूर बचा सकते हैं|
Read 367 times