बिना रजिस्ट्रेशन 8 वर्षों से प्रकाशित हो रहा है झारखंड पीआरडीए का मासिक पत्र!

झारखंड सरकार के सूचना एंव जन संपर्क विभाग की मासिक पत्रिका ” झारखंड बढ़ते कदम…. ” वर्ष 2004 से बिना निबंधन के निकल रहा है। उसके हालिया अंक के अनुसार इस नियमित पत्रिका के संरक्षकः अर्जुन मुंडा,मुख्यमंत्री झारखंड).

प्रधान संपादकःडी.के.तिवारी (भा.प्र.से.), प्रधान सचिव, सूचना एवं जन संपर्क विभाग. संपादकःशालिनी वर्मा,उप निदेशक,मुख्यमंत्री सचिवालय,जन संपर्क ईकाई.

प्रकाशकः सूचना एवं जन संपर्क विभाग,मुख्यमंत्री सचिवालय,जन संपर्क ईकाई. परिकल्पना, अलंकरण एवं मुद्रणः सेतु प्रिंटर,न्यू एरिया,मोरहाबादी,रांची,झारखंड हैं।

सेतु प्रिंटर के प्रोपराइटर के अनुसार बर्ष 2004 से प्रकाशित इस अनिबंधित मासिक पत्र की अभी 8,000 प्रतियां प्रकाशित होती है और उसे इस मद में कुल 2.56 लाख रुपये मासिक प्राप्त होता है। ” झारखंड एक बढ़ते कदम ” के बिना निबंधन के नियमित प्रकाशन जारी रहने की बाबत सेतु प्रिंटर के प्रोपराइटर ने कहा कि सरकार की पत्रिका है , इसलिये वे छाप रहे हैं। यदि प्राइवेट होता तो कदापि नहीं छापते। 

हालांकि यह दीगर बात है कि जिस उन्नत तकनीक व कागज के सहारे पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है,वह साफ स्पष्ट करता है कि राशि भुगतान की तुलना में प्रतियां कम छापी जा रही है या फिर अधिक राशि का भुगतान किया जा रहा है। जानकार बताते हैं कि प्रोपराइटर जितनी प्रतियां छापने और जितनी राशि भुगतान पाने की बातें कर रहे हैं, वह तो कागज मूल्य से भी कम है। इस संदर्भ में सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत जानकारी मांगे जाने पर कोई अधिकारिक जानकारी नहीं दी जाती है। जाहिर है कि इसमें एक बड़ा खेला है और पत्रिका प्रकाशन की आड़ में काफी घोर-मठ्ठा हो रहा है।

विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि मासिक पत्रिका “ झारखंड बढ़ते कदम…. ”  की सौ-दो सौ प्रतियां सिर्फ दिखावे के लिये छापा जा रहा है और इसके नाम पर भारी  राशि का बंदरबांट किया जा रहा है।

बहरहाल, इस पत्रिका के पिछले 8 वर्षों से बिना निबंधन के नियमित प्रकाशन जारी रहना ही खुद में एक अपराध है। प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 के अनुसार कोई भी पत्र-पत्रिका या पुस्तक इसके प्रावधानों का पालन किये बगैर प्रकाशित नहीं की जा सकती है। इस अधिनियम के प्रवधानों- नियमों  का उल्लंघन करके पुस्तक या पत्र-पत्रिका मुद्रित या प्रकाशित करने अथवा छापाखाना चलाने वालों को किसी मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी पाये जाने पर 2000 रुपये तक का जुर्माना और 6 माह तक  की कैद की सजा हो सकती है।

अब सबाल उठता है कि क्या ” झारखंड एक बढ़ते कदम ” पत्रिका के संरक्षक बने मुख्यमंत्री, सूचना एवं जन संपर्क विभाग के प्रधान सचिव (भा.प्र.से )  से लेकर मुद्रक-प्रकाशक तक को इन  कड़े नियमों  की जानकारी नहीं है ? अगर है तो इनके विरुद्ध कार्रवाई क्यों नही की जा रही है ? आखिर सरकारी राशि  का घोर-मठ्ठा का खेल कब तक चलता रहेगा?

Read 4671 times Last modified on Tuesday, 24 January 2017 18:31