यह पत्र प्रकाशक सुनील राय द्वारा लिखा गया है, जिसका प्रकाशन स्वयं उन्होंने अपने अखबार व ब्लॉग में किया है। प्रस्तुत है उनका पूरा पत्र…
दिल्ली सरकार के सूचना एवम् प्रचार निदेशालय में चल रहे घोटालों-घपलों को हमारा समाचार पत्र लगातार उजागर कर रहा है। उससे सूचना एवम् प्रचार निदेशालय के उन लोगों में भारी खलबली मची हुई है जो काफी समय से मलाईदार पदों पर काबिज हैं। वह लोग अब लघु समाचार पत्र प्रकाशकों को
आश्वस्त करने में जुटे हुए हैं और यह कहते हुए नहीं थक रहे हैं कि आपका एक भी विज्ञापन का नुकसान नहीं होगा जबकि लघु समाचार पत्रों के विज्ञापनों पर बुरी नजर डालने वाले यही लोग हैं। मामला सिर्फ विज्ञापनों तक सीमित नहीं है।
विभाग में हर तरफ घोटालों की भरमार है, और विज्ञापन एजेंसियों तथा अन्य मामलों में यह लोग मोटी मलाई काट रहे हैं जिसमें निदेशक रीता कुमार का मूक दर्शक बने रहना इनके भ्रष्टाचार को खुले समर्थन का सूचक है। यह पहला अवसर है कि दिल्ली सरकार के किसी विभाग की अनियमिताओं के समाचार सोशल नेटवर्किगं साइट फेसबुक, ट्विटर और ब्लॉग पर छाए हुए हैं। यह बात अलग है कि यह सभी समाचार दुर्भाग्यवश सरकार एवम् लोकप्रिय मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल करने वाले हैं, इसकी जिम्मेदारी उस विभाग और व्यक्ति की है जिस पर सरकार की छवि जनता में सधारने की है।
यह पहला अवसर है जब सूचना एवम् प्रचार निदेशालय ने गांधी जी, नेहरू जी तथा लोह महिला इन्दिरा जी के जन्म एवम् शहीदी दिवस के विज्ञापनों को फिजूलखर्ची बताकर रोक दिया। इससे समाचार पत्र प्रकाशकों एवम् जागरूक पाठकों में भारी रोष है। जिस समय यह पत्र लिखा जा रहा है, उस समय संसद एवम् न्यूज चैनलों में शरद पवार के चांटे की गूंज सुनाई दे रही है।
यह चांटा भ्रष्टाचार, घोटालों ओर आमजन की आवाज को बेशर्म अफसरों ओर नेताओं द्वारा अनसुनी किए जाने की परिणति मात्र है। इस तरह की घटनाएं किसी एक व्यक्ति का जुनून नहीं है। यह आमजन की वह पीड़ा है जिसको वह सीने में दबाए इस दरवाजे से उस दरवाजे तक घुम रहा है और जिसको विलासिता की जिन्दगी जीने वाले यह लोग सुन नहीं पा रहे हैं।
आमजन जब बेबस ओर मजबूर होकर कशमशा कर रह जाता है तो हरविंदर सिंह की तरह अपने गुस्से का इज़हार इस तरह से उन लोगों पर उतारता है जिन लोगों पर इन समस्याओं के निराकरण की जिम्मेदारी होती है। इसी तरह की कशमशाहट अब दिल्ली के लघु एवम् मझौले समाचार पत्रों में नज़र आ रही है जिनके आस्तितव को ही ललकारा जा रहा है। सूचना निदेशालय द्वारा मई से अब तक झूठे आश्वासनों के जरिये ठगा जा रहा है। हम यहां यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम इस तरह के किसी भी कार्य के पक्षधर नहीं है।
हम निदेशक रीता कुमार का ध्यान इस खुले पत्र के द्वारा आकर्षित करना चाहते हैं और बताना चाहते हैं कि सूचना एवम् प्रचार निदेशालय में लगातार लघु समाचार पत्रों का शोषण हो रहा है, इससे रोकने का दायित्व आपका है। लघु समाचार पत्रों के लिए लम्बी जद्दोजहद के बाद 13 विज्ञापन निर्धारित हुए थे जिनमें से मई 2011 से पहले तक सिर्फ 9 विज्ञापन ही दिए जा रहे थे। अब उनमें भी सेंध लगाकर 7 विज्ञापनों की कटौती कर सिर्फ 2 विज्ञापन ही दिए जाने की बात कही जा रही है, यह सरासर अन्याय है।
लघु समाचार पत्र उस आमजन की आवाज को सरकार तक पहुंचाता जिसके बारे में गांधी जी ने अपने जन्तर में उल्लेख किया है। शायद अंग्रेजी भाषा एवम् संस्कृति के लोगों को गांधी जी के जन्तर के बारे में जानकारी नहीं है इसलिए वह ऐसे कदम उठा रहे हैं। इस पत्र में हम उनके लिए गांधी जी का वह जन्तर की प्रकाशित कर रहे हैं। शायद इसी से उनकी आंखो के आगे छाया भ्रम हट सके और ईश्वर उन्हे सदबुद्धि दे जिससे यह लोग लघु एवम् मझौंले समाचार पत्रों की समस्याओं पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर उनका निराकरण कर सके और निदेशालय में फैले भ्रष्टाचार की आकाशबेल को नष्ट करने का प्रयास करें।
शुभकामनाओं सहित,
आपका शुभेच्छु
सुनील राय
Read 8380 times Last modified on Tuesday, 24 January 2017 19:18