लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन लगातार यह बताती आई है कि डीएवीपी की विज्ञापन नीति के चलते किस प्रकार क्षेत्रिय सामाचारपत्रों की अनदेखी की जाती है। वर्तमान में डीएवीपी की विज्ञापन नीति 2010 ना केवल अप्रसांगिक हो चुकी है बल्कि में इतनी खामियां हैं कि इसे तुरंत प्रभाव से बदला जाना चाहिये।.
डीएवीपी की विज्ञापन नीति किस हद तक अप्रासंगिक हो चुकी है इसका एक ताजा उदहारण 23 मार्च को “शहीद दिवस” पर सामने
आया। 23 मार्च को देश के प्रधानमंत्री शहीद दिवस पर भारत के महान क्रांतिवीरों शहीद भगत सिंह, शहीद सुखेदव, शहीद राजगुरू को जिस धरती पर श्रद्धांजलि देने हुसैनीवाला गांव पहुंचे थे वो फिरोजपुर जिले का भाग है। फिरोजपुर जिले से भारत का एक मात्र स्थानीय/क्षेत्रिय समाचारपत्र “सरहद केसरी” बरसों से अपनी खबरों के माध्यम से जन सेवा कर रहा है।
फिरोजपुर भारत पाकिस्तान की सीमा से लगा अति संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्र है। लेकिन सीमावर्ती सूदूर क्षेत्र के एकमात्र समाचारपत्र होने के बावजूद भी डीएवीपी द्वारा ‘सरहद केसरी’ को छोड़ कर बिग मीडिया कहलाने वाले समाचारपत्रों को शहीद दिवस का विज्ञापन जारी किया गया।
लीपा ने दिसम्बर 2014 में खुलासा किया था कि किस प्रकार इस पंगु नीति का दोहन कर डीएवीपी के कुछ भ्रष्ट अफसर और बाबू अपना कमीशनखोरी का धन्धा चला रहे हैं। जिसके चलते क्षेत्रिय समाचारपत्रों को सरकारी विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं।
पढिये: “डीएवीपी में विज्ञापन का महाघोटाला: हर साल बाबू और अफसर खा जाते हैं करोड़ो का कमीशन”
डीएवीपी में लागू विज्ञापन नीति 2010 के मुताबिक सूदूर क्षेत्रों में काम कर रहे क्षेत्रिय भाषा के समाचारपत्रों को विज्ञापन देने के लिये प्राथमिकता की दी जाएगी। लेकिन असल में ऐसा नहीं हो रहा है। लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन इस विषय पर गम्भीरता से कार्य कर रही है। आज भी देश की 75 फीसदी जनता को खबर देने का काम क्षेत्रिय समाचारपत्र करते हैं, फिर भी डीएवीपी द्वारा मिलने वाले सरकारी विज्ञापन का अधिकतर हिस्सा बड़े अखबारों को चला जाता है। क्योंकि विज्ञापन नीति 2010 में लघु एवं मध्यम समाचापत्रों के रूप में सूचिबद्ध क्षेत्रिय समाचारपत्र और बड़े मीडिया के रूप में सूचिबद्ध अधिक प्रसार वाले अखबार (जो केवल देश की 25 प्रतिशत आबादी को कवर करते हैं) को एक साथ रखा गया है। उनके लिये एक ही बजट से विज्ञापन बंटवारा होता है। ऐसे में क्षेत्रिय समाचारपत्रों के साथ अन्याय होना बहुत स्वभाविक है।
लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन का मानना है लोकतंत्र में क्षेत्रिय समाचापत्रों के योगदान को देखते हुए एक नई विज्ञापन नीति का निर्माण होना चाहिये जिससे क्षेत्रिय समाचारपत्रों को आर्थिक मजबूती दी जा सके ताकि वो निष्पक्ष खबरों को भयहीन व दबाव मुक्त होकर प्रकाशित करते रहें। इस मुहिम में हम सभी सदस्यों से उनके सुझाव आमंत्रित कर रहे हैं। हमारी ऐसोसिएशन के 7 हजार सदस्य इस पर अपने सुझाव हमे भेज रहे हैं। हम दूसरी मीडिया एसोसिएशंस से अपील करते हैं वो इस कार्य में हमे सहयोग दें। क्षेत्रिय समाचारपत्रों के लिये नई विज्ञापन नीति पर सुझाव देने के लिये lipamember@gmail.com पर मेल करें। अथवा 09810294262 पर सम्पर्क करें।