विज्ञापन नीति 2016 के नाम पर डीएवीपी में अखबारों पर सारे नियम कायदे लाद दिये गये हैं। उनसे जुड़े हजारों परिवार घोर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। डीएवीपी में क्षेत्रीय अखबारों को चोर साबित करके उन्हें सीधे डीपैनल की सजाए सुनाई गई।
मोदी साहब अगर आप लोगो के भ्रष्टाचार की नीव पर मजबूरी में खड़े होने वाले किले गिरा रहे हैं तो ये तो बता दिजिये कि विकल्प क्या है। आपने अन्धी कमाई करने वाले बड़ॆ सेठों को मौका दिया कि आप अपनी काली कमाई 50-50% पर सफेद कर लीजिये और आगे से ईमानदारी बरतिये। अच्छी बात है। अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिये लोग अपने बने बनाये बिजनेस तबाह करने को तैयार हैं। मगर अन्दर का तंत्र तो साफ नहीं हो रहा। आपके पास ब्यूरोक्रेट्स और अफसरशाही को दुरूस्त करने का क्या तंत्र है?
इसी भ्रष्टाचार उन्मूलन में मीडिया भी आया है लेकिन इसकी मार सबसे ज्यादा क्षेत्रीय समाचारपत्रों पर पड़ रही है। रेट रिन्यूअल के दौरान डीएवीपी ने प्रकाशको के माथे एक के पीछे एक ऐसे नोटिस चिपकाए जो अपनी पिछली बात की अवहेलना करते हों। विज्ञापन नीती 2016 में पहले लिखा गया कि 45000 से अधिक सर्कुलेशन वाले अखबारों को मार्किंग सिस्टम का पालन करना है और एबीसी या आरएनआई द्वारा जारी सर्कुलेशन वेरीफिकेशन सर्टिफिकेट जमा करना है। सितम्बर आते-आते कानून बदल गया। अब ये क्राइटेरिया 25000 पर लागू कर दिया गया।
हम जीएसटी को सही मानते हैं, लेकिन फिर भी पहले ऐसे अखबारों को जिनका एनुअल टर्नओवर 20 लाख से कम है जीएसटी से बाहर रखा गया था लेकिन अब सबको जीएसटी रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है ये भी पिछले जारी हुए नोटिस का उल्लंघन है।
इसके पहले हर साल रेट रिन्यूअल के लिये 30 दिन दिये जाते थे इस बार 14 सितम्बर तक सस्पेंस रखा गया कि रेट रिन्यूअल होगा या नहीं। और जब 14 सितम्बर से रिन्यूअल शुरू हुआ तब 20 सितम्बर के अंतिम होने का फरमान भी जारी हो गया। जिसमें सरकारी बाबुओ और विभागो को सटरडे सनडे भी एंजॉय करना था।
इस संबंध में डीएवीपी की साइट पर जारी एडवाइजरी से यह क्लियर नहीं हुआ कि जिन अखबारों का सर्कुलेशन 25000 से कम हैं उनके लिये हार्ड कॉपी जमा करवाने की अंतिम तारीख 30 सितंबर है या 15 अक्टूबर। एडवाइजरी में रिन्यूअल की तारीख 20 सितम्बर ही थी लेकिन 30 सितम्बर तक रिन्यूअल जारी रहा। क्षेत्रीय प्रकाशको को परेशान करने का ये एक नया तरीका था।
यदि सरकार के इरादे मीडिया से भ्रष्टाचार मिटाने के हैं तो उन्हें क्षेत्रीय अखबार चलाने वाले प्रकाशकों की उस मजबूरी को ध्यान रखना चाहिये जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार सीखा। सरकार को रीजनल अखबारों को भी सुधार के लिये विकल्प देना चाहिये। यदि सरकार रीजनल मीडिया की ओर इसी तरह पीठ फेरे रही तो छोटे-छोटे स्तर पर चलने वाले अखबार बन्द हो जाएंगे, उनसे जुड़े हजारों परिवार फाका झेलेंगे। लीपा सवाल करती है कि क्या कुछ भ्रष्ट अखबारों के कारण पूरे रीजनल मीडिया को सजा दी जा सकती है?
लीपा का मानना है कि सरकार देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिये नये सुधार और कानून ला रही है लेकिन भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर जो खेल डीएवीपी में चल रहा है और जिस तरह सूचना प्रसारण मंत्रालय और सरकार व्यवहार कर रहे हैं उससे प्रतीत हो रहा है कि सरकार अपने खिलाफ विरोधी स्वर सुनने की क्षमता नहीं रखती। क्योंकि क्षेत्रीय समाचारपत्रों को मैनेज करना किसी भी सरकार के बस की बात नहीं है।
विज्ञापन नीति के नाम पर हो रहे खेल से क्षेत्रीय स्तर पर चलने वाले अखबार खत्म हो जाएंगे और जब ब्लॉक लेवल पर चलने वाले ये छोटे-छोटे अखबार खत्म हो जाएंगे तो खबरों की विविधता की हत्या हो जाएगी। छोटे स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार की खबरों का खुलासा करने के लिये कोई नहीं होगा। मीडिया में मोनॉटनी का राज होगा। एक ही तरह की खबर हर अखबार में कॉपी पेस्ट होगी। सरकार को फायदा पहुंचाने वाली खबरें ज्यादा होंगी। उस स्थिति में मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ नहीं रहेगा एक मैनेज्ड मीडिया होगा जो सरकारी प्रोपेगंडा को बढ़ावा देगा और सरकार पर सवाल करने वाली खबरें कहीं दिखाई नही देंगी।
यदि भ्रष्टाचार मिटाने की आड़ में यही मंशा है तो ठीक है। हम लड़ाई के लिये तैयार हैं। यदि नहीं तो हम सरकार से मांग करते हैं कि तंत्र में बैठे भ्रष्ट बाबुओ और अफसरों पर भी कार्रावाई होनी चाहिये। साथ ही छोटे-छोटे स्तर पर चलने वाले अखबारों के आर्थिक सुरक्षा देने के प्रावधान होने चाहिये, अलग विज्ञापन नीति होनी चाहिये। क्षेत्रीय अखबारों के लिये साल में कम से कम 10 से 12 विज्ञापन सुनिश्चित होने चाहिये। (लीपा द्वारा विज्ञापन नीति पर दी गई सिफारिशें पढ़ें)
रीजनल मीडिया की लोकतंत्र में अलग ताकत और अहमियत है। किसी बड़े मीडिया की औकात नहीं थी जो डेरे में छुपे उस अय्याशी के अड्ड़े के खिलाफ खबर छापते ये छोटे अखबार “पूरा सच” का ही साहस था जिसने छत्रपति की बलि दी और गुरमीत जैसे ढोंगी बाबा का साम्राज्य तबाह किया।
अत: लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन बताना चाहती है कि सरकार क्षेत्रीय समाचार पत्रों को कुछ भ्रष्ट अखबारों क्षेत्रीय अखबारों की श्रेणी में रख कर यह निर्णय ना ले कि सभी क्षेत्रीय अखबार झूठे हैं गलत हैं। अगर क्षेत्रीय अखबारों ने भ्रष्ट तंत्र और सामाजिक परिदृश्य के चलते अपने सर्कुलेशन में हेर फेर किया है तो उन्हें सही करने का मौका मिलना चाहिये। क्योंकि इस देश में 80 प्रतिशत लोग अपनी मर्जी से बेईमान नहीं बने हैं उन्हे भ्रष्ट तंत्र ने बेईमान बनाया है।
लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन डीएवीपी में हो रहे इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की मांग करती है तथा क्षेत्रीय समाचारपत्रों के लिये अलग विज्ञापन नीति और पत्रकार सुरक्षा कानून जल्द लागू करने की मांग करती है।