लीपा ने ना किया शोर ना हंगामा, विज्ञापन नीति में होगा संशोधन

डीएवीपी की नई विज्ञापन नीति क्षेत्रीय समाचारपत्रों के सामने एक बड़ी चुनौती है, और इस चुनौती का सामना अपने निजि हित त्यागकर एकता दिखाकर ही किया जा सकता है।

देश भर से हमारे पास उन संगठनो के खुले पत्र और फोन आ रहे हैं जो इस विषय पर गम्भीर हैं। हमारे साथियों ने बार बार कहा की इस देश में लीपा ही एक ऐसा संगठन है जो इस नीति में परिवर्तन करा

सकता है। इसलिए आपको विस्तार से बताएँगे कि इस मुद्दे पर लीपा ने अब तक क्या किया और कैसे किया।

लीपा द्वरा उठाये गये अब तक के कदम

सरकार द्वारा जैसे ही विज्ञापन नीति थोपी गयी हमें समझ में आ गया कि देश की कुछ ऐसी लॉबी है जिन्होंने हमारी कमजोरियों का जमकर लाभ उठाया और सरकार को समझाने में कामयाब रहे कि देश के अधिकतर क्षेत्रीय समचारपत्र छपते नहीं है। लीपा ने सबसे पहले सरकार और उनके प्रतिनिधियों को यही समझाने की कोशिश की, कि हमारे देश 90 % रीजनल समाचारपत्र है और उनके महत्व को फिर से समझना जरुरी है, इसके लिये अनेक औपचारिक और अनौपचारिक मीटिंग की गयी, हमारे सभी 17 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भी अपने यहाँ के सांसदों को विज्ञापन नीति की खामियों के सन्दर्भ में विस्तार से समझाया नतीजतन सरकार को यह समझ में आ गया कि जिस लॉबी ने विज्ञापन नीति पर सरकार को पहले भ्रमित किया था उसको ठीक करने की आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में लीपा द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र का एक अंश…

  महोदय,  हमारे देश में रजिस्टर्ड समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में से 70 प्रतिशत क्षेत्रीय समाचारपत्र एवं पत्रिकाएं रजिस्टर्ड है जो विषम आर्थिक संकट के बावजूद असल मायनों में अपने क्षेत्र की सेवा कर रहे हैं। लघु कहलाने वाले क्षेत्रीय समाचारपत्र /पत्रिकाएं ही हैं जो भारत की आत्मा हैं। यही अखबार भारत की लोक कलाओं, लोक कलाकारों और एतिहासिक धरोहरों का संरक्षण का कार्य कर रहें हैं। यही क्षेत्रीय अखबार देश की 80 प्रतिशत आबादी को उनकी भाषा में उनके समाचार देने का कार्य कर रहें है। यही क्षेत्रीय समाचारपत्र और पत्रिकाएं हैं जो सरकार की नीतियों का सही प्रसार गांव, कस्बों और शहरों तक कर रहें हैं। आज भी देश में हजारों ऐसे हिस्से हैं जहां ये अखबार विपरीत औद्योगिक व भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद अबाध खबरें देने का काम कर रहे हैं। सही मायनों में क्षेत्रीय समाचारपत्र एवं पत्रिकाएं ही भारत के लोकतंत्र की सच्ची आवाज हैं।

ऐसे में नई विज्ञापन नीति में कई नियम ऐसे शामिल किये गये हैं जो इन क्षेत्रीय अखबारों का गला घोट देंगे। जिसके बाद कुछ बड़े अखबार बचेंगे जो अपने हिसाब से खबरों की रिपोर्टिंग करेंगे। 

महोदय जिस तरीके से विकसित राष्ट्र बनने के लिये गांवों को विकसित करना जरुरी है वैसे ही मजबूत लोकतंत्र के लिये मजबूत क्षेत्रीय अखबारों का होना जरुरी है। देश की विदेश नीति से लेकर अर्थव्यवस्था की चर्चा जैसे चाय की दुकान पर जितनी वास्तविकता के साथ होती है उतनी बड़े बड़े भवनों और ए.सी. कमरों में नहीं हो पाती और ना ही उन चर्चाओं को उन बड़े अखबारों में जगह मिल पाती है। इन चर्चाओं को अगर कोई अखबार हेडिंग बनाता है तो वह है क्षेत्रीय अखबार। 

इतना ही नहीं लीपा अध्यक्ष के नाम तक़रीबन 900 अख़बारों ने पत्र लिखा था, जिनमें कुछ राज्यों के मीडिया संगठ भी हैं, जो इस विज्ञापन नीति का विरोध कर रहे थे, इन सभी पत्रों को लीपा की तरफ से प्रधानमंत्री कार्यालय व सूचना मंत्रालय में भेजा गया जिसका व्यापक असर हुआ और सरकार हरकत में आयी।    

सरकार आई हरकत में

ऐसे कई पत्र और मीटिंग करने के बाद सरकार इस बात के लिये कन्विंस हो पाई कि नई विज्ञापन नीति में कुछ ऐसी खामियां है जिन्हें दूर करना अत्यंत आवश्यक है, सूचना मंत्रालय और पीएमओ के भरोसेमंद अधिकारियों की तरफ से खबर मिली है कि सरकार नई विज्ञापन नीति में संशोधन करेगी अन्यथा एक कमिटी बनायेगी जो समग्र रूप से विज्ञापन नीति की समीक्षा करेगी, इस कमिटी में रीजनल मीडिया के संगठन भी शामिल होंगे। 

जब हमने अपनी ही उड़वाई खिल्ली   

डीएवीपी की विज्ञापन नीति के विरोध में लगातार कुछ गतिविधियां कुछ् संगठनो की ओर से की जा रहीं है, जो इतने गम्भीर मुद्दे को ना तो सही ढंग से कह रहे हैं और ना ही सही फोरम पर कह रहे हैं। इस तरह की गतिविधियां ना केवल प्रकाशको की जग हंसाई करवा रही हैं बल्कि इस गम्भीर लड़ाई को कमजोर कर रही हैं। कुछ संगठनों ने बिना किसी सही रणनीति और नेतृत्व के भूख हड़ताल और जंतर मंतर पर हंगामा करके इस मुद्दे को ना केवल हल्का कर दिया बल्कि भूख हडताल और आंदोलन के आख्रिरी रास्ते को भी बंद कर दिया।

लीपा के एसएमएस करने के बाद लीपा के कई सदस्य वहां पहुंचे थे, जंतर मंतर पर कुछ प्रकाशक यूपी से पहुंचे थे वहां फैली अफरेअ तफरी से उनकी आशाएं बुरी तरह टूटी। जिन संगठनो ने जंतर मन्तर पर आन्दोलन के स्वरूप में केवल हंगामा किया और अपने ही समूह में एक दूसरे की आलोचना की उससे ना केवल हमारा मुद्दा कमजोर पड़ा बल्कि सरकार में यह सन्देश गया कि रीजनल मीडिया आपस में ही कितना बिखरा हुआ है उनके पास सही तर्क, सही रणनीति, और नेतृत्व नहीं है। जबकि यह पूरा सत्य नहीं है।

इस हंगामे के दौरान कई लोग लीपा का विरोध करते देखे गए, हम यह बताना चाहते है कि लीपा की स्थापना करने वाली संस्था लीड इंडिया ग्रुप में 3 अखबार है जिसके प्रकाशक श्री सुभाष सिंह है। लीपा के अध्यक्ष श्री सुभाष सिंह ने अपने किसी भी अखबार का डीएवीपी में पंजीकरण नहीं कराया ताकि कोई आरोप ना लग सके। लीपा का मकसद रीजनल मीडिया के साथियों के सम्मान और उनकी आर्थिक उन्नति के लड़ना है ना कि किसी भी प्रकार के श्रेय लेने की होड़ या ओछी राजनीति का हिस्सा बनना है।

आगे की रणनीति

अभी तक के आंकलन के हिसाब से सरकार की तरफ से दिया जा रहा भरोसा विश्वास करने लायक लग रहा है, यदि सरकार विज्ञापन नीति में परिवर्तन करने के अपने वादे से मुकर जाती है तो लीपा के सभी सदस्य सरकार के नीतियों का विरोध अपने अखबार के माध्यम से करेंगे और हर रोज पीएमओ में सैकड़ो अखबार भेजे जायेंगे जो विज्ञापन नीति पर सरकार को घेरेंगे अगर सरकार तब भी नहीं मानी तो हम कोर्ट अथवा आंदोलन का रास्ता अख्तियार  करेंगे।  

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