प्रयासों के बाद आखिरकार डीवीपी को उन अखबारों को पैनल पर लेना पड़ा जिन्होंने अपना सर्कुलेशन कम किया था। लीपा का मानना है कि सर्कुलेशन कम करने के कारण अखबारों क़ो डीपैनल करना एक अन्याय पूर्ण कदम था। डीमॉनीटाइजेशन और आरएनआई में सर्कुलेशन जांच में होने वाली लम्बी देरी के बाद प्रकाशक यह कदम उठाने को मजबूर थे। उसके बावजूद प्रकाशकों से उनका पक्ष पूछे बगैर उन्हे डीपैनल करना निहायत गलत था। इसके खिलाफ लीपा ने लगातार काम किया और कई मीटिंग्स और पत्राचार किया और यह बात सरकार को समझाने में कामयाब रही। उसके बाद अंतत: यह फैसला आया।
डीएवीपी ने एडवाइजरी जारी करते हुए 187 अखबारों की सूची जारी की है जिन्हें पैनल पर वापस लिया गया है। अब उन्हें विज्ञापन नीति 2016 के अनुसार उनके सर्कुलेशन के आधार पर नये रेट दिये जाएंगे।
अभी अन्य अखबारों को भी पैनल पर लिया जाना बाकी है। डीएवीपी के मुताबिक उन्होंने अभी डॉक्युमेंट पूरे जमा नहीं किये हैं जिसकी वजह से उन्हें पैनल पर वापस नहीं लिया गया है।
इसके अलावा एक और बात डीएवीपी ने एडवाजरी में कही है कि जिन अखबारों ने अपने सर्कुलेशन में 25% तक कमी की है उन्हें इस संबन्ध में उपयुक्त जवाब देना होगा। यदि वो अपना पक्ष नहीं रख पाते हैं तो उन्हें पैनल से हटा दिया जाएगा।
लीपा का मानना है कि जो अखबार गलत तरीके से पैनल पर हैं और अधिक विज्ञापन ले रहे हैं वो उन अखबारों का हक मार रहे हैं जो खून पसीना लगाकर अखबार निकालते हैं, अत: ऐसे अखबारों की छटनी होना भी अनिवार्य है।
लीपा अन्य कई विषयों पर भी प्रकाशकों के हित की लड़ाई लड़ रही है। लीपा ने एक अलग विज्ञापन नीति और जर्नलिस्ट प्रोटेक्शन एक्ट के लिये संस्तुति सरकार को पहले ही सौंपी हुई हैं। लीपा का मानना है कि विज्ञापन नीति 2016 या तो क्षेत्रीय समाचारपत्रों के हित में काम करें या क्षेत्रीय समाचारपत्रों के लिये लीपा द्वारा प्रस्तावित विज्ञापन नीति पर विचार किया जाए।
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