देश में आज तक जितने भी घोटाले हुये हैं उनमें ज्यादातर को उजागर करने का श्रेय मीडिया को जाता है, लेकिन इस देश में एक महाघोटाला ऐसा भी है जो आज तक उजागर नहीं हुआ, जिसे मीडिया ना सिर्फ सह रहा है बल्कि उसका हिस्सा बनने के लिये मजबूर है। ये घोटाला इतना
सुनियोजित है कि इसे सिद्ध करना बहुत टेढ़ी खीर है। करोड़ो का ये घपला सरकारी विज्ञापन जारी
करने वाली सरकारी एजेंसी “दृश्य एवं विज्ञापन प्रचार निदेशालय” यानी डीएवीपी में हो रहा है। हर साल डीएवीपी के बाबू और अफसर अखबारों को ब्लैकमेल कर करोड़ो का हेरफेर बड़ी सफाई से कर रहें है। अखबार इस तंत्र का हिस्सा बनने को मजबूर हैं क्योंकि उन्हें अपना अखबार चलाने के लिये हर हाल में धन की आवश्यकता होती है।
डीएवीपी विज्ञापन में घोटाले की शुरूआत ना जाने कब से चली आ रही है, लेकिन हमारे पास इस महाघोटाले के तकरीबन 5 वर्षो के आंकड़े मौजूद है। जो उपरी तौर से बड़े साफ सुथरे दिखते हैं। जितना बजट आया उतना विज्ञापन नीति के अनुसार वितरित होता दिखता है। लेकिन जरा बारीकी से देखते ही डीएवीपी के बाबुओं का धन्धा समझ में आ जाता है। आज की तारीख में डीएवीपी एक महाभ्रष्ट सरकारी एजेंसी बन चुकी है जो अखबार मालिकों को ब्लैकमेल कर रही है। कोई भी सवाल करेगा कि आखिर मीडिया अपने ही क्षेत्र में हो रहे घोटाले को उजाकर क्यों नहीं कर रहा है। कोई भी पहली नजर में भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता पर सन्देह कर सकता है कि अखबार मालिक डीएवीपी के महाघोटाले का हिस्सा बनकर अपना लाभ कमा रहें हैं। लेकिन सच्चाई इसके एकदम विपरीत है। अखबारों को मिलने वाली एकमात्र सरकारी आर्थिक मदद यानि सरकारी विज्ञापन के माध्यम से जारी होने वाला पैसा डीएवीपी के कुछ भ्रष्ट बाबुओं और अफसरों की भेंट चढ़ रहा है।
सरकार प्रिंट मीडिया में प्रचार–प्रसार के लिए हर वर्ष डीएवीपी को तकरीबन अरबों रूपये का बजट सौंपती है। इसमें इलैक्ट्रॉनिक मीडिया, हॉर्डिंग, एड अजेंसी आदि नहीं हैं। विज्ञापन के माध्यम से अकेले प्रिंट मीडिया पर भारत सरकार 1 से 4 अरब प्रति वर्ष खर्च कर रही है। हमने 4 वर्षो के बजट का आनकलन किया है। इसमें वर्ष 2014-15 में अब तक 1,12,47,62,429 रूपये जारी किये जा चुके हैं इसी प्रकार वर्ष 2013-14 में 3,73,38,52,546 रू., वर्ष 2012-13 में 2,90,48,56,416 तथा वर्ष 2011-12 में 2,91,61,07,240 रूपये के विज्ञापन सरकार द्वारा जारी किये गये। पिछले साल 2013-14 में इस बजट का सबसे अधिक 3,73,38,52,546 रूपया विज्ञापन के माध्यम से अखबारों को दिया गया। इस बजट का 15 प्रतिशत हिस्सा डीएवीपी को चला गया जो नीति के अनुसार सही है, लेकिन इसके अलावा पूरे बजट का 30 से 35 प्रतिशत हिस्सा भ्रष्ट बाबू और अफसर खा गये।
कायदे से इस बजट को सरकारी विज्ञापन के रूप में डीएवीपी में सूचिबद्ध अखबारों को एड पॉलिसी 2007 के मुताबिक विज्ञापन दिया जाना होता है। जिसमें सर्कुलेशन एक पैरामीटर होता है, जिसके आधार पर अखबारों को विज्ञापन ज्यादा या कम दिया जाता है। इसके अंतर्गत 35 प्रतिशत विज्ञापन बड़े अर्थात अधिक सर्कुलेशन वाले अखबारों को 35% प्रतिशत लघु समाचारपत्रों को तथा बाकी 30% मझौले सर्कुलेशन वाले समाचारपत्रों में समान रूप से वितरित होना चाहिये। इसमें भाषाई समाचारपत्रों और दूरवर्ती राज्य को और अधिक प्रमुखता देने की सिफारिश है।
लेकिन डीवीपी में बैठे कुछ बाबू और अफसरों ने इसी नीति का लाभ उठाते हुए अपना धन्धा सैट कर लिया है। ये भ्रष्ट अफसर और बाबूअपनी ड्यूटी ठीक से निभाने के बजाये अखबारों के एजेंट के रूप में काम कर रहें हैं विज्ञापनों की बन्दरबांट कर अपनी जेब भर रहे हैं।
ये बाबू और अफसर कोशिश में रहते हैं कि अपने सरकारी वेतन के अलावा 4-5 अखबारों को फिक्स कर ले जिनसे वो सरकार द्वारा अखबार को जारी हुए विज्ञापन में से 30 से 35 प्रतिशत कमीशन खा सकें। डीएवीपी के कुछ अधिकारी इसी का फायदा उठाते हुए अपनी कमीशनखोरी की दुकान चला रहे हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, असम से लेकर गुजरात तक कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां डीएवीपी के विज्ञापन वितरण में घोटाला ना हो रहा हो।
सरकारी विज्ञापन घोटाले को समझने के लिये हमने देश के हर राज्यों से कुछ उदाहरण लिये हैं। आइये जानिये कैसे डीएवीपी में जारी है भ्रष्टाचार का खेल।
इसके लिये हमने एक सारणी तैयार की है। सारणी में हर स्टेट से 15/10/2013 मे इम्पैनल्ड समाचारपत्रों को तुलनात्मक अध्ययन के लिये लिया है जिसमें समाचारपत्रों को विज्ञापन जारी करने में हुई अनियमितता स्पष्ट प्रमाणित होती है।
एक समान सर्कुलेशन के एक अखबार को जमकर विज्ञापन दिये गये हैं तो दूसरे अखबार को 8-10 या मात्र 2 ही विज्ञापन दे कर टरका दिया गया है। बडॆ ही सुनियोजित तरीके से यहां विज्ञापन का घपला किया गया है। उदाहरण के लिये दमन, जो केन्द्र शासित राज्य के साथ-साथ सूदूरवर्ती राज्य भी है, यहां एक सर्कुलेशन, सीए सर्टिफिकेशन, एक ही डेट ऑफ इम्पैनलमेंट, और एक ही भाषा होने के बावजूद विज्ञापन देने में जबरदस्त घपला किया गया। दमन और दीव के दमन से प्रकाशित होने वाले अखबार “सवेरा इंडिया टाइम्स” जिसका सर्कुलेशन 23134 उसे 2014 में 79 विज्ञापन मिले। जबकि दमन से ही प्रकाशित दूसरे अखबार “जनता सरकार” हिन्दी जिसका सर्कुलेशन 25700 है उसे 2014 में मात्र 8 एड मिले।
दूरवर्ती राज्यों की बात छोड़िये देश की राजधानी दिल्ली में भी डीएवीपी का ये सुनियोजित षड़यंत्र चलता है। दिल्ली से प्रकाशित ”अमृत इंडिया” को 16600 सर्कुलेशन दिखाने पर भी 79 एड मिले जबकि वहीं “पीपुल समाचार” का सर्कुलेशन 23851 होने पर भी उसे मात्र 10 विज्ञापन जारी किये गये।
कश्मीर से लेकर केरल और असम से लेकर गुजरात तक विज्ञापन अनियमितता के उदाहरणों की हमारे पास पूरी सूची है, जिसे हम मांगे जाने पर दिखा सकते हैं।
आन्ध्र प्रदेश में देखिये
अधिक विज्ञापन | कम विज्ञापन | ||
NEWSPAPER | PRAJASAKTI | NEWSPAPER | OBLIGATION |
PUBLICATION | VIJAYAWAD | PUBLICATION | VIJAYAWAD |
LAN/PER | TEL/D | LAN/PER | ENG/D |
CIRCULATION | 49279 (CA) | CIRCULATION | 55300 (CA) |
EMPANELLED | 15-10-2013 | EMPANELLED | 15-10-2013 |
ADVERTISEMENT | 63 | ADVERTISEMENT | 2 |
63 और 2 का अनुपात साफ बताता है कि डीएवीपी के अफसर और बाबू किस तरह कमीशनखोरी का धन्धा कर रहे हैं। इसी तरह के उदाहरणों की हमारे पास हर राज्य से सूची मौजूद है।
हैरानी तो असम के आंकडॆ देखकर होती है जहां असमी भाषा और सीए सर्टीफाई और एबीसी सर्टीफाई अखबार के विज्ञापन तक में डीएवीपी ने हेराफेरी की। गुवाहाटी के बंगाली दैनिक और स्थानीय भाषा के अखबार को दिये गये विज्ञापन के आंकडॆ देखिये।
अधिक विज्ञापन | कम विज्ञापन | ||
NEWSPAPER | DAINIK JUGASANKHA | NEWSPAPER | AJI |
PUBLICATION | GUWAHATI | PUBLICATION | GUWAHATI |
LAN/PER | BEN/D | LAN/PER | ASS/D |
CIRCULATION | 74839 (CA) | CIRCULATION | 75000 (CA) |
EMPANELLED | 15-10-2013 | EMPANELLED | 15-10-2013 |
ADVERTISEMENT | 164 | ADVERTISEMENT | 10 |
यहां हम यह स्पषट कर देना चाह्ते हैं कि लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन किसी अखबार को अधिक विज्ञापन मिलने का विरोध नहीं कर रही है, क्योंकि यदि वो कमीशनखोरी के जाल में फंस कर विज्ञापन ज्यादा ले भी रहें हैं तब भी उन्हें डीएवीपी द्वारा निर्धारित 15% से कही ज्यादा कमीशन घूसखोर अफसर और बाबुओं को खिलाना पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर जिन्हें डीवीपी से कम विज्ञापन मिले उनके साथ अन्याय स्पष्ट झलक रहा है।
इस प्रक्रिया में दोनो ही तरह के अखबारों को आर्थिक शोषण सहना पड़ता है, किसी अखबार को साल भर में 10 लाख का विज्ञापन तो मिलता है लेकिन 3-4 लाख रूपया कमीशनखोरी में चला जाता है। कई बार तो यह कमीशन 50% भी हो जाता है। यानि 10 लाख में से 5 लाख सीधा भ्रष्ट अफसरों और बाबुओं की भेंट चढ़ जाता है। और जिन अखबारों को नाममात्र का विज्ञापन मिलता है उनका आर्थिक शोषण स्वाभाविक रूप से सामने है।
डीएवीपी में भ्रष्टाचार की जड़े इतनी ही नहीं हैं बल्कि एक और घातक पहलू है जिस पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भी चिंता जता रहा है। जिस क्लेम्ड सर्कुलेशन पर डीएवीपी अखबारों को सूचिबद्ध करती है और उन्हे रेट कार्ड देती है उसी सर्कुलेशन को बाद में मानने से इंकार कर देती है। क्योंकि अखबारों को डीएवीपी में सूचिबद्ध कराने के लिये भी प्रकाशकों से मोटी रकम एंठी जाती है। उस वक्त यह नहीं देखा जाता कि अखबार का सर्कुलेशन कितना है, ना ही डीएवीपी उस सर्कुलेशन की कोई जांच करती है। पैसे खाने की हड़बड़ी में आंख बन्द कर डीएवीपी अखबारों को सूचिबद्ध कर लेती है। यदि डीएवीपी चाहे तो किसी भी अखबार का उसी वक्त सर्कुलेशन की जांच करा सकती है। बाद में यही अखबार जब विज्ञापन मिलने पर अधिकारियो/कर्मचारियों का मुंह मांगा कमीशन देने से इंकार करते हैं तो उनके एड रोक दिये जाते हैं और उन अखबारों को बन्द होने के लिये मजबूर कर दिया जाता है। डीएवीपी में कमीशनखोरी का यह धन्धा वर्षों से चला आ रहा है। प्रकाशक के हक के करोड़ो रूपये कमीशन के रूप में डीएवीपी के भ्रष्ट अफसरों और बाबुओं की जेब में जा रहे हैं।
इस मुद्दे पर लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन (लीपा) यह स्पष्ट कर देना चाहती है कि हमारा विरोध उन अखबारों से नही है जिन्हे अधिक विज्ञापन मिल रहे हैं, बल्कि हमारा मानना है कि उन अखबारों को अनैतिक कमीशनखोरी में पैसा ना देना पड़ॆ और जिन अखबारों को विज्ञापन नहीं मिले हैं उन्हे ईमानदारी से विज्ञापन मिलें। लीपा चाहती है कि विज्ञापन देने के लिये एक पारदर्शी नीति बने जिसके तहत सभी अखबारों को बराबर विज्ञापन मिले।
इस कदम से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की देश में क्लेम्ड सर्कुलेशन की चिंता भी दूर हो जायेगी।
हम यह बता दें कि देश के चौथे स्तम्भ यांनि मीडिया में रीजनल अखबारों की 70 प्रतिशत भागीदारी है इनके लिये स्पष्ट विज्ञापन नीति बननी चाहिये। ताकि क्षेत्रीय समाचपत्र विज्ञापन मिलने या ना मिलने के आर्थिक दबाव से मुक्त होकर आम जन की खबर को निष्पक्ष रूप से प्रकाशित कर सकें। साथ यह भी सुनिश्चित हो सके कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारी/कर्मचारी प्रेस का गला ना घोंट सकें और अखबारों को किसी प्रकार के आर्थिक शोषण का शिकार ना बना सकें।
लेखक श्री सुभाष सिंह लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, स्वयं भी लीड इंडिया दैनिक अखबार के प्रकाशक व संपादक हैं परन्तु निष्पक्षता बनाए रखने के लिए उन्होंने अपने किसी भी अखबार को डीएवीपी में सूचीबद्ध नहीं कराया है जिससे एसोसिएशन की गरिमा और निष्पक्षता बनी रह सके। सभी प्रकाशकों से अपील है कि इस खुलासे को निर्भीक हो कर अपने अखबार में प्रकाशित करें व अखबार या पत्रिका की कॉपी लीपा के दिल्ली दफ्तर में भेंजे। यदि डीएवीपी अपने अंदर स्वयं सुधार नहीं करती है तो हम सरकार के साथ-साथ न्यायालय की शरण में जाएंगे और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे कि एक पारदर्शी विज्ञापन नीति के माध्यम से सभी अखबारों को बराबर विज्ञापन मिल सके। यदि आपके पास अन्य शिकायत या सुझाव हो तो इस नम्बर 08800444555 पर संपर्क करें।
अखबार या पत्रिका की कॉपी लीपा के इस पते पर भेजें..
‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’
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