पत्रकार सुरक्षा कानून

लेखिका: डॉ तरूणा एस. गौड़

भारत में हर साल पत्रकारों पर हमले होते हैं, उनके किडनेप होते हैं या उन्हें झूठे मुकदमो में फंसा कर हैरेस किया जाता है। फिर भी अपनी जान जोखिम में डाल कर पत्रकार समाचारों के संकलन का काम करते हैं।  शांतिपूर्ण माने जाने वाले देश भारत में भी 2020 में बदला लेने के लिए दो पत्रकारों की हत्या की गई। पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है जहां वो अपने काम की वजह से मारे जाते हैं या के बदले अपनी जान देनी पड़ती है।  

पत्रकारों के लिए काम करने वाली एक संस्था कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (CPJ) के इंडेक्स मुताबिक़ पत्रकारों के लिए खतरनाक देशों में भारत का नंबर 14वा है। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (CPJ) पत्रकारों के लिए काम करने वाली एक संस्था।  ये संस्था हर साल दुनिया भर में पत्रकारों पर हुए हमलो और हत्याओं का रिकोर्ड रखती है और उनके अलग-अलग तरीके के इंडेक्स जारी करती है।

रिपोर्ट के मुताबिक़ 1992 से लेकर अब तक भारत में 48 पत्रकारों की जघन्य तरीके से ह्त्या हुई है। इसके अलावा 34 पत्रकारों पर जानलेवा हमला हुआ है। दुःख की बात तो यह है कि बीते 23 सालो में केवल एक मिड डे के पत्रकार ज्योतिर्मय डे की ह्त्या के मामले में ही दोषियों को सजा हुई।  बाकी सारे मामले आज तक पेंडिंग हैं।  क्योंकि पत्रकार साधारण हैं और हमलावर हाईप्रोफाइल।  

2015 में उत्तर प्रदेश के स्वतन्त्र पत्रकार जागेन्द्र की ह्त्या के बाद पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग और जरूरत तेजी से महसूस की गयी, पत्रकार जगेन्द्र की ह्त्या के बाद एक और हाई प्रोफाइल पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या हुई। लेकिन उसके बावजूद भी देश में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोइ विशेषाधिकार कानून नहीं है।  जिसकी वजह से पत्रकारों पर लगातार हमले होते हैं भ्रष्ट अफसर और माफिया उन्हें आसान टार्गेट समझते हैं।

हालांकि  कुछ राज्यों में कुछ अलग-अलग नियमो के साथ है जर्नलिस्ट प्रोटेक्शन एक्ट है, और कुछ राज्यों में प्रस्तावित हैं। लेकिन कुछ न कुछ कमी है जैसे साल 2018 में महाराष्ट्र सरकार का पत्रकार सुरक्षा क़ानून तकनीकी दांवपेंच में फंस चुका है।  महाराष्ट्र पत्रकार सुरक्षा क़ानून जब केंद्र की अनुशंसा के लिए राष्ट्रपति महोदय के पास पहुंचा तो उन्होंने कहा कि एक अपराध के लिए दो कानून नहीं हो सकते अत: पत्रकारों के लिए अलग से सुरक्षा कानून संभव नहीं।  

लेकिन उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ सरकार जो नया कानून ला रही है वो लागू हो जाए और पूरे देश के लिए आदर्श उदाहरण बन सके। 05 दिसम्बर 2020 को छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून का प्रारूप राज्य शासन को सौंपा गया है। ये प्रारूप एक समिती ने बनाया है जिसके अध्यक्ष हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री आफताब आलम हैं।  इस समिति में वरिष्ठ पत्रकार, क़ानून के जानकार, ब्योरोक्रेट्स और प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल थे।  जिन्होंने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए अलग से कानून की सिफारिशे की हैं।  उम्मीद है जल्दी है ये कानून छतीसगढ़ में लागू हो जाएगा।  

वैसे तो पिछले 4 दशको में 2 लॉ कमीशन भी पत्रकारों के लिए कानून में विशेषाधिकार की बात कर चुके हैं,  लेकिन किसी भी सरकार ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. पत्रकारों को बस इतने से ही काम चलाना पड़ता है कि मीडिया को 19 (1) (क) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी है।  या फिर भारतीय प्रेस परिषद यानी पीसीआई पत्रकारों के लिए कुछ अलग अनुशंसा करती है।  

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट 1978 के धारा 15 (2) में साफ लिखा है कि किसी जर्नलिस्ट को खबर के सूत्र की जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता लेकिन PCI केवल सलाह दे सकती है अत इसके नियम कोर्ट में लागू नहीं होती।  हालांकि कई मामले हुए जिनमे पत्रकारों से सोर्स तो पूछ गया लेकिन उन्हें मजबूर नहीं किया कि वो अपने सोर्स का खुलासा करें।  फिलहाल तो इसी से काम चलाना।  

Read 227 times Friday, 19 September 2014 09:00Written by  Super User